Introduction
प्रत्युष मासिक पत्रिका समर्पित करते हुए मुझे अत्यंत हर्ष हो रहा है। पिछले करीब दो दशको से छात्र जीवन से ही सामाजिक-राजनैतिक क्ष्रेत्र में सक्रिय रहने के बाद पिछले कुछ महीनो से मार्ग-द्रष्टाओ और मित्रो से सार्वजनिक-रचनात्मक क्ष्रेत्र में कुछ नया करने की ललक से विचार मंथन चलता रहा, और अंततः यह तय हुआ की प्रत्युष नाम से मासिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया जाये। आखिर कांग्रेस मीडिया सेंटर के साथियो, समाज के विभिन्न वर्गों-संगठनो के शुभचिंतको व सेवाभावी उधमीजनो के उत्साहवर्धन ने प्रत्युष के प्रकाशन का स्वप्न साकार किया, जिनका म़ें बहुत बहुत आभार मानता हूँ। प्रत्युष उस विचारधारा की संदेशवाहक बनने का प्रयास करेगी जिसने समाजवादी समाज की रचना की शपथ ली हुई है।
जिसने स्वतंत्रा संघर्ष के दौरान जबरी कुर्बानिया दी और बाद में राष्ट्र के नव निर्माण का आन्दोलन शुरूं किया। प्रत्युष समाज के हर वर्ग की प्रवक्ता-पत्रिका होगी। गाँव-ढाणी मजरे की समस्याएं उठाने का प्रयास होगा। गरीब, कमजोर, उपेक्षित आदिवासी महिलाओं, अनूसुचीत जाती-जनजाति एवं पिछङे वर्ग के राष्ट्रीय-सामाजिक विकास कार्यक्रमों में योगदान की बात होगी तो, उनके दुःख दर्द की लोर भी सरकार व प्रशाशन तक दस्तक दी जाएगी। इससे उन तमाम विषयो की झलक होगी, जो कला, साहित्य, संस्कृति, पर्यावरण, चिकित्सा, आध्यातम, उध्योग से सम्बंधित होंगे। राजनीती पर तीखी एवं चुटील बहस से प्रत्युष कतराएगी नहीं। प्रत्युष मासिक पत्रिका के लोकार्पण पर में अखिल भारतीय कांग्रेस की अध्यक्षा माननीय सोनिया गाँधी, माननीय पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, व पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. गिरिजा व्यास का भी आभारी हू की उनकी सद्प्रेरणा और आशीर्वाद ने मुझे सार्वजनिक क्ष्रेत्र में सदेव प्रोत्साहित किया और प्रत्युष के निर्णय को सराहा। वरिष्ट पत्रकार आदरणीय विष्णु शर्मा हितेषी, ने मेरे आग्रह को स्वीकार कर इसके संपादन का दायित्व ग्रहण किया है, उनका भी में ह्रदय से आभार मानता हू।
प्रत्युष अर्ताथ नयी भोर मेरे लिए कसौटी है-चुनौती है। इसे में आप सब के आशीर्वाद और बूते पर स्वीकार करता हूँ। मेरा प्रयास रहेगा की इसकी नियमितता बनी रहे और यह अपने मिशन में कामयाब हो। प्रत्युष मासिक पत्रिका के रूप में प्रत्युष का पहला पुष्प आप सबकी साक्षी में श्रदेय माताश्री-पिताश्री श्रीमान आनंदीलाल जी शर्मा व श्रीमती प्रमिला देवी जी शर्मा के श्री चरणों में सादर समर्पित है।
आजादी का उज्वल पक्ष सबके सामने है। उससे जनता को जो रहत मिली, उस पर हर किसी को संतोष और गर्व हो सकता है। स्वतंत्रता आन्दोलन नें एकाधिकारवाद को चुनौती दी और शासन व्यवस्था, सामाजिक उत्पीडन तथा अर्थ पक्ष से जिस हद तक जनसाधारण को त्रान दिलाया, उतने अंशो में उस सराहा ही जायेगा। परन्तु अचानक वे कौन-कौनसे कारण आ खड़े हुए भारत में आजादी की आधी शताब्दी पूरी होने के साथ-साथ राष्ट्रीय राजनीती के मूल्यों में लगातर गिरावट होती गयी। माध्यम वर्ग भोगवाद की मांग से मदमस्त हो रहा है। पुरे देश में आतंकारी निर्भय स्वच्छन्दता पूर्वक विचरण कर बेगुनाहो का जीवन लील रहे हैं। वोट खोरों कें सांप्रदायिक उन्माद से परमपरागत सदभाव और जीवन मूल्यों का महावट वृक्ष जो देश और समाज को अपनी शीतल छाया से राहत पहुचता था, सूख रहा है, उसकी शाखाएं-प्रशंखाए लुंठित पड़ी है।
हमारे लोगो और राजनेताओ को यह समझ लेना चाहिए की देश के खिलाफ बाहरी ताकतों की नियोजित साजिश चल रही है, जो राष्ट्रीय एकता और अखंडता पर लगातार चोट कर रही है। कश्मीर और अन्य शहरो में आतंकवाद का जो घिनोना चेहरा सामने आया है, उसके मनसूबे संसद भवन और उसके बाद अक्षरधाम में स्पष्ट हो गए है। हमारी राष्ट्रीय अस्मिता को पडोसी देश नें बार- बार जलील किया है। उसके बावजूद सता का स्वाभिमान नहीं जागा और वह अमेरिका के सफ़ेद घर की रिपोटॆन मात्र साबित हुई। जो कुछ करना है, वह देश की समर्थ और समझदार जनता को करना है।
जहाँ तक आतंकवाद का सवाल है, इसके इतिहास से यह बहुत स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है की जब भी ये ताकतें अपनी निराशा और हताशा की चरम सीमा पर पहुच जाती है, तब ये सबसे ताक़तवर केंद्र पर हमला करने लगती है। सेना आतंकवाद से निपटने की अंतिम संस्था होती है । सेना से टकराव का अभिप्राय है, आतंकवादी ताकतों का समूल नष्ट हो जाना। यदि आतंकारी सेना पर हमले कर रहे है, तो उनकी हताशा चरम पर है, वे समझ गए है की अब भारतीय क्षेत्र में अपनी कारस्तानी को अंजाम देने की लिए उनका बहुत दिनों तक जिन्दा रह पाना कठिन है। पडोसी राष्ट्र जेहाद के नाम पर ऑक्सीजन के रूप में उन्हें धन व हथियार देकर जिलाए रखने पर आमादा है, जिसका कारगर जवाब जो अंततः दिल्ली की सत्ता को ही देना होगा। देखना यह है की सब्र के बाँध की आढ़ में वह कितने दिन और जन मानस की अनदेखी करती है। बहरहाल हमें हर हालात में अपनी एकता और पारस्परिक सदभाव की कड़ियों को बिखरने नहीं देना है। प्रत्युष (एक नयी भोर) का आपके नाम पहला यही विनम्र सन्देश है।